The Fire Test of Beauty: magicneed story,
बहुत समय पहले की बात है। एक विशाल और समृद्ध राज्य पर राजा विक्रमसिंह का शासन था। सोने की छतों वाले महल, हर ऋतु में झरने की तरह बहते भोज्य पदार्थ, और हजारों सेवक – राजा के पास किसी चीज़ की कमी न थी, पर एक बात थी जो उसकी आत्मा को परेशान करती रहती थी,
उसे एक ऐसी स्त्री की तलाश थी जो अद्वितीय रूपवती हो और साथ ही उसकी इच्छाओं की पूर्ति भी कर सके।

तपस्वनी की अग्नि-परीक्षा (Tapaswini ki agni pariksha)
राजा की खोज जल्द ही ख़त्म हुई जब उसकी नजर राज्य की सीमा से लगे एक शांत जंगल में रहने वाली एक तपस्वनी “आर्या” पर पड़ी। उसकी सुंदरता ऐसी थी जैसे चाँद रात के अंधेरे को चीरता हो। उसके चेहरे से तेज़ बहता था, और उसके नेत्रों में कोई अनोखी, रहस्यमयी शांति थी।
राजा ने उसी क्षण निर्णय लिया — “यही होगी मेरी रानी।”
राजा ने तुरन्त सैनिक भेजकर आर्या को दरबार में बुलवाया। जैसे ही तपस्वनी आई, सारा दरबार उसकी आभा से चमक उठा। राजा ने अभिमानपूर्वक कहा,
“तुम्हें मैं रानी बनाना चाहता हूँ। तुम्हारे लिए सोने-चाँदी के महल बनवाऊँगा। बस तुम्हें हाँ कहना है।”
लेकिन आर्या मुस्कुराई और दृढ़ता से मना कर दिया।
राजा चकित था। उसके अहंकार को चोट लगी। उसने सोचा — “क्या कोई मेरी इच्छा ठुकरा सकता है?“
क्रोधित होकर राजा ने आदेश दिया,
“यदि एक सप्ताह में आर्या तैयार नहीं हुई, तो मैं बलपूर्वक उससे विवाह कर लूंगा।”
सारा दरबार स्तब्ध था, पर आर्या शांत रही। उसने सिर्फ इतना कहा —
“महाराज, मुझे एक सप्ताह का समय दें। फिर मैं स्वयं आऊंगी… आपकी रानी बनने।”
सुंदरता की अग्नि-परीक्षा The fire test of beauty
एक सप्ताह बीत गया।
महल के द्वार पर शहनाइयाँ बजने लगीं। सुगंधित फूलों की वर्षा हो रही थी। एक सुंदर जोड़े में लिपटी आर्या, लंबा घूंघट किए, कमरे में प्रवेश करती है। राजा ने गर्व से आगे बढ़कर उसका घूंघट उठाया…
…और झटका खा गया।
घूंघट के पीछे था एक हड्डियों का ढांचा, झुर्रियों से भरा चेहरा, गाल पिचके हुए, होंठ जैसे सूखकर लुप्त हो गए हों।
राजा चीख पड़ा —
“ये क्या है? तुम तो उस दिन अप्सरा जैसी लग रही थीं! अब ये कैसा रूप?”
आर्या ने गहरी साँस ली और कहा:
“राजन, आपने मुझमें आत्मा नहीं, केवल शरीर की सुंदरता देखी थी।
आज मैं उसी शरीर को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ —
क्योंकि शरीर ही तो चाहिए था ना आपको?
अब इसमें मोह कैसा?”
“यह मेरी योग शक्ति है, जिससे मैंने अपने रूप को त्यागा।
क्योंकि जो मनुष्य रूप से प्रेम करता है, वो प्रेम नहीं करता — वो केवल स्वार्थ करता है।”
राजा स्तब्ध रह गया। उसका सिर शर्म से झुक गया। उस क्षण उसे अपने अहंकार, वासना और स्वार्थ का बोध हुआ।
वह तपस्वनी के चरणों में गिर पड़ा और कहा —
“आपने मुझे जीवन का सबसे बड़ा पाठ पढ़ाया है। कृपया मुझे क्षमा करें।”
आर्या ने कहा,
“राजन, क्षमा तब मिलती है जब परिवर्तन किया जाए।
प्रभु से प्रार्थना कीजिए कि अगली बार जब आप किसी स्त्री को देखें,
तो पहले उसकी आत्मा को पहचानें — शरीर तो नश्वर है।”
सीख
जीवन में शांति, धैर्य, और आत्मचिंतन से बड़ा कोई अस्त्र नहीं।
कभी भी अहंकार, वासना और स्वार्थ के वश में आकर किसी के अस्तित्व का अपमान न करें।
क्योंकि शरीर क्षणिक है, पर आत्मा… अनंत है।
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